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एक ही आत्मा अनेक रूपों मे कैसे?

आपकी सहेली
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पूर्वजों का श्राद्ध करने के दो अहम कारण है। पहला इसी बहाने हम उन्हें याद करते है।

दूसरा ऐसी मान्यता है कि यदि श्राद्ध के दिन हम हमारे पूर्वजों का स्मरण कर

ब्राह्मणों को प्रेम से खिलाते है तो हमारे पूर्वजों ने जीस भी योनि में जन्म लिया हो उन्हें उस दिन अच्छा खाना मिलेगा।

मुझे लगता है कि श्राद्ध करने से पहले हमें कुछ बातों पर ज़रूर गौर करना चाहिए।

हमारे मुताबिक, हमारे पूर्वजों की आत्मा स्वर्ग सिधार गई यानी उन्हें मोक्ष की प्राप्ती हुई। अब जो आत्मा

मूलत: स्वर्ग में ही है उनका श्राद्ध करने का क्या औचित्य हो सकता है? क्योंकि स्वर्ग में रहने वालों को सब

सुखों की प्राप्ती होती है, चाहे उनके परिजन उन्हें याद करे या न करे! स्वर्ग में खाने-पीने की भी कोई कमी नहीं

है। स्वर्ग नाम ही उस जगह का है जहां पर सिर्फ सुख ही सुख है। हम अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर उनकी आत्मा

को आमंत्रित कर ख़िला-पिला रहे है इसका मतलब उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हुई है ऐसा हमें लगता है। खैर ये

तो हुई तर्क की बाते! वास्तव में हमें पता ही नहीं होता कि हमारे पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई है या उन्होंने

84 लाख योनियों में से किसी एक योनि में जन्म लिया है। हम सोचते है कि यदि हमारे पूर्वजों ने किसी एक

योनि में जन्म लिया होगा तो उन्हें किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ़ न हो, उन्हें भोजन की प्राप्ति हो इसी

भावना के वशीभूत होकर हम श्राद्ध करते है।

एक ही घर में रहनेवाले दो इंसानों में से एक के खाना खाने पर वो खाना दूसरे के पेट में नहीं पहुँचता! हमारे

पूर्वज तो कहां, किस योनि में, कितनी दूरी पर है यह भी हमें नहीं मालूम तो फिर यहां पर ब्राह्मण को खिलाने

पर वो खाना हमारे पूर्वजों तक कैसे पहुँचेगा? इसलिए मुझे लगता है की हमें हमारे बुजुर्गों की जीते-जी ही अच्छे

से देखभाल करनी चाहिए। जीते जी जो भी हम हमारे बुजुर्गों को खिलाएंगे वो सीधे उन्हीं के पेट में जायेगा!

जब हम गाय या कौए को रोटी खिलाते है तो हमारे मन में यह भावना होती है कि स्वयं हमारे पूर्वज गाय या

कौए के रूप में पधारे है। इसलिए जब गाय या कौआ रोटी नहीं खाते है तो हम कहते है कि हमारे पूर्वज हमसे

नाराज़ है। जरा सोचिये, एक ही आत्मा गाय और कौआ दोनों रूपों में कैसे आ सकती है? यदि किसी व्यक्ति को

तीन बेटे हो और तीनों अलग-अलग जगहों पर रहते हो तो तीनों भाई तीन गायों को, तीन कौओं को रोटी

खिलायेंगे। एक ही आत्मा अलग-अलग जगहों पर और अलग-अलग रूपों में कैसे प्रकट हो सकती है?

शहरों में गाय या कौआ ढूंढने पर भी नहीं मिलते। ऐसे में क्या हम यह मानेंगे कि हमारे पूर्वज भूखे रह गए?

मेरा यह कहना नहीं है कि इन्हें रोटी नहीं खिलानी चाहिए या श्राद्ध नहीं करना चाहिए। लेकिन इस भागदौड़ भरी

जिंदगी में गाय या कौए ने रोटी नहीं खाई तो कही हमारे पूर्वज हमसे नाराज तो नहीं है ऐसा सोचकर परेशान

नहीं होना चाहिए। क्योंकि जिस गाय या कौए को हम रोटी खिला रहे है उनमें हमारे पूर्वजों की आत्मा होगी ही

यह जरुरी नहीं है।

गौग्रास या कागबली के कारण ब्राम्हण भोज को देर न हो, बच्चों को स्कुल जाने और किसी को दफ़्तर या

दुकान पर जाने में देर न हो बस हमें यही सोचना है। अत: समय का महत्व समझिए! अपनी तर्क शक्ति का

इस्तेमाल कर निर्णय लीजिए। इसी में हम सबकी भलाई है।

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