जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण जी पर एक ब्लॉग लिखने की सोच रही थी कि सर्वप्रथम मन में उनकी मोर पंख वाली छबि आई। हमारे इतने सारे देवी-देवताओं में सिर्फ श्रीकृष्ण जी ही मोर पंख धारण करते है! इसकी वजह है “मोर ही एक ऐसा पक्षी है जो पूर्ण ब्रम्हचारी है। मोर जब पंख फैलाकर नाचता है तब बहुत आनंदित हो जाता है। पर जब वो अपने पैरों को देखता है तो उसे बहुत दू:ख होता है और वो रोने लगता है। उस वक्त मोरनी मोर के अश्रुबिंदु को पी जाती है। उसी अश्रुबिंदु से मोरनी गर्भ धारण करती है। इस तरह मोर पूर्ण ब्रम्हचारी है। हमें लगता है कि श्रीकृष्ण जी की तो १६-१६ हजार पत्नियां थी फिर वे ब्रम्हचारी कैसे? तो श्रीकृष्ण जी सिर्फ आंखों ही आँखों मे… ! इस तरह ब्रम्हचार्य का प्रतिक रूप में श्रीकृष्ण जी मोर पंख धारण करते है।”
आगे सोच ही रही थी कि क्या लिखुं इतने में किसी कार्यवश उठना पड़ा। अब एक बार उठे तो जल्दी कहां लिखने बैठना होता है? ब्लॉग पूरा लिखे बिना ही सोने चली गई। अचानक एक दिव्य प्रकाश दिखाई दिया। और सामने साक्षात श्रीकृष्ण जी!! मेरी आंखे तो आश्चर्य से फ़टी की फ़टी रह गई! विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सामने साक्षात श्रीकृष्ण जी है! मैंने सोचा खुदको चिमटी लेकर देखती हु कि कही मैं सपना तो नहीं देख रही। अब श्रीकृष्ण जी तो सर्वज्ञाता ठहरे! उन्होंने जान लिया कि मैं खुदको चिमटी लेकर देखने वाली हुं। “रुको, तुम सपने में ही हो! जाग गई तो मैं अदृश्य हो जाऊंगा।” “प्रभु, आपने मुझे सपने में ही सही दर्शन तो दिए! मैं तो धन्य हो गई!! लेकिन आपके आनेका प्रयोजन क्या है?” “तुम मेरे ऊपर एक ब्लॉग लिख रही थी इसलिए तुम्हें कुछ बताने आया हुं” “वा s s व…हे माधव, अभी तो मेरी धरती पर ही ब्लॉगर के रूप में पहचान होना बाकी है और आप स्वर्ग से आ गए? सच आज मैं कितनी खुश हूँ आपको शब्दों में नहीं बता सकती। अब मुझे लगता है कि मेरा अच्छी ब्लॉगर बनने का सपना जरूर पूरा होगा।”
“मैं स्वर्ग से ऊब चूका हूं!” “यहांपर हम धरती-वासी स्वर्ग सा सुख चाहते है और आप कह रहे है स्वर्ग से ऊब चुके है?” “व्दापर में मैं जब आया था तब कितना मजा आया था! बचपन में माखन चुराकर खाना, गोपियों की मटकियां फोड़ना, बाद में दृष्टों के संहार हेतु, धर्म की स्थापना हेतु विविध कार्य करना, महाभारत के युद्ध में हर रोज एक नया प्लान बनाना; ये सब चीजे स्वर्ग में कहां करने मिलती है? यहाँ पर तो एक सा रूटीन है इसलिए ऊब गया हुं! वैसे मैंने ही कहा था कि ‘यदा-यदा ही धर्मस्य—‘ अत: अपनी बात को सार्थक करने के लिए धरती पर अवतार लेना मेरी मज़बूरी है।”
“हे माधव, अभी भारत में आपके बिना आये ही एक-एक व्यक्ति आपके गीता ज्ञान पर चल रहा है। अभी तीन-चार दिन पहले ही टी.व्हि. पर न्यूज में एक विडिओ दिखाया गया जिसमे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को बहुत ही बुरी तरह से मार रहा है और साथ में कहता जा रहा है कि तुम्हें तो मरना ही था, इस तरह मार खानी ही थी, मैं तो निमित्त मात्र हूं! हे माधव, वह दृश्य बहुत ही विभित्स था। याद करकर अभी भी रोंगटे खड़े हो रहे है! इस देश का एक-एक व्यक्ति यही सोच रहा है कि मैं तो निमित्त मात्र हुं सामनेवाले व्यक्ति के साथ तो ऐसा गलत होना ही था! एक-एक व्यक्ति अपने गुरुओं को,पितामहों को, भाइयों को, मित्रों को मारने के लिए आतुर है। वो भी सिर्फ भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए, अपने स्वार्थ के लिए! हे माधव, आपने कभी सोचा ही नहीं होगा कि आपके अर्जुन-उपदेश का लोग क्या अर्थ लगायेंगे और उसके कितने भयंकर परिणाम होंगे? आज भारत के हर घर में महाभारत हो रहा है! सारे रिश्ते-नाते नाममात्र के रह गए है। हे माधव, मेरी भारत के हर नागरिक की तरफ से आपको यह विनम्र विनती है आप अवतार जरूर ले। हमें आपके मार्गदर्शन की अत्यंत जरुरत है। लेकिन तुम तो निमित्त मात्र हो! सामनेवाले व्यक्ति के साथ तो ऐसा होना ही था। ऐसा उपदेश मत दीजियेगा! कहते है न कि जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान! ये है गीता का ज्ञान…! इसी गीता ज्ञान के अनुसार अब इस उपदेश की जरुरत है ‘किसी भी कार्य के लिए तुम निमित्तमात्र नहीं हो! तुम्हारे हर अच्छे या बुरे कार्य के लिए तुम खुद जिम्मेदार हो।’ आशा है पुरे भारतवासी की विनती पर आप जरूर गौर फरमाएंगे!”
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