Menu
blogid : 18944 postid : 767816

क्या बच्चों पर पारिवारिक संस्कारों का असर होता है?

आपकी सहेली
आपकी सहेली
  • 19 Posts
  • 5 Comments

‘बच्चें जैसा देखेंगे वैसा सीखेंगे’

‘देखेगी बाप घर तो करेगी आप घर’


vibhishan and ravan

रावण और विभीषण



ऐसे वाक्य हम कई बार सुनते है। सही भी है। बच्चा जो देखेगा, वही सीखेगा। यह पारिवारिक संस्कारों का ही नतीजा है कि सामान्यत: डॉक्टर का बेटा डॉक्टर, राजनीतिज्ञ का बेटा राजनीतिज्ञ, किसान का बेटा किसान बनता है। हम अक्सर कहते है कि अमुक कला तो उसके खून में है। लेकिन यदि अच्छे पारिवारिक संस्कारों से बच्चा अच्छा ही बनेगा इसकी ग्यारंटी होती तो आज तक जितने भी महापुरुष हुए उन सबके बच्चे भी महापुरुष ही बनते। महापुरुष नहीं तो कम से कम कुछ तो महान काम करते ताकि आज की पीढ़ी उनको याद रखती! क्या आपको महात्मा गांधी,लालबहादुर शास्त्री, डॉ.आंबेडकर इनके बच्चों  के नाम पता है? क्या आपने कभी गौर किया कि एक ही परिवार में जन्में, एक ही वातावरण में पले-बढ़े दो सगे भाइयों के स्वभाव में जमीन-आसमान का फ़र्क़ क्यों होता है? रावण और विभीषण एक ही परिवार में पैदा हुए, एकसाथ पले-बढ़े फिर एक राक्षसी प्रवृति का तो दूसरा धार्मिक प्रवृति का कैसे? यह स्पष्ट करने के लिए मैं एक परिवार की मिसाल देना चाहूंगी।


उस परिवार में दो भाई थे। एक भाई अव्वल दर्जे का नशेबाज था, अपनी पत्नी और बच्चों को मारता पीटता था, जो कमाता वो नशे में उडा देता था। उसीका दूसरा भाई बच्चों पर जान छिड़कता, पत्नी को बड़े नाजो से रखता, उसके घर में किसी प्रकार की कमी नहीं थी, समाज में खूब मान-सम्मान था। आखिर एक माँ की कोख से जन्म लेने वाली उन संतानो में इतना अंतर कैसे? शराबी भाई के मुताबिक, ”अगर मैं अपने बच्चों को मारता-पीटता हूं तो इसमे नई बात कौनसी है? मेरा बाप भी ऐसा ही करता था। वह भी मेरी माँ को जलील करता, हम बच्चों को खूब मारता-पीटता था, सारे पैसे शराब में फूंक डालता। मैं जो कुछ भी हूं, मेरे बाप के कारण हूं। मैंने बचपन से ऐसा ही वातावरण देखा है।” दूसरे भाई के मुताबिक, ”बचपन में मैं देखा करता था कि मेरे पिता अव्वल दर्जे के नशेबाज थे। वे नशे में मेरी माँ को, हम बच्चों को बड़ी बेरहमी से मारते-पीटते थे। उसी वक्त मैंने संकल्प ले लिया कि मैं कभी भी अपनी पत्नी पर हाथ नहीं उठाऊंगा, मैं अपने बच्चों को नहीं सताऊंगा। मैं समाज में इज्जत की जिंदगी जिऊंगा। मेरे जीवन में जो कुछ भी अच्छाइयां है, वे इसी संकल्प की बदौलत है।”

आप को क्या लग रहा है? मुझे ऐसा लगता है कि पारिवारिक संस्कारों का बच्चों पर असर होता है, लेकिन कुछ हद तक! बच्चें अपने घर के वातावरण से क्या शिक्षा ग्रहण करते है यह बच्चों की खुद की समझ और दृष्टी पर निर्भर है। कहावत है न, ‘हम घोड़े को तालाब तक ले जा सकते है लेकिन जबरदस्ती पानी नहीं पिला सकते!’

नोट- मेरा कहने का कतई ये मतलब नहीं है कि हमें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं देने चाहिए। हमें अपनी ओर से पूरी कोशिश करनी चाहिए। लेकिन अंतिम फैसला बच्चों का खुद का ही होता है।


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh