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बेटी बचाओ अभियान – ( भाग 2 )

आपकी सहेली
आपकी सहेली
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जिस तरह हम बेटों की परवरिश पर, पढ़ाई-लिखाई पर पूरा-पूरा ध्यान देते है, ठीक उसी तरह यदि हम बेटियों की परवरिश पर,पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देंगे तो मुझे पूरा विश्वास है कि बेटियां किसी भी मामले में बेटों से कम नहीं है। मेरीकॉम, इरोम शर्मीला, सायना नेहवाल, इंदिरा नुई, सुनीता विलियम्स क्या ये बेटियां बेटों से कम है? बेटों की तरह ही बेटियां भी हमारा नाम रोशन करेंगी, हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेंगी और हमें मुखाग्नि भी देंगी। कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना ही है कि जब तक हमारी ये घिसी-पिटी मान्यताएं समाप्त नहीं होंगी, तब तक बेटियां मारी जाती रहेंगी।


हरियाणा के कुरुक्षेत्र में लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल रही है। राजस्थान के अलवर में 15,000 लड़कियां बिहार आदि राज्यों से खरीदकर लाई जाती है। ऐसी शादियों से हुई संतानों का कोई भविष्य नहीं होता। समाज उन्हें मान्यता नहीं देता। खरीदकर लाई गई लड़कियों को भेड़-बकरियों से भी बदतर समझा जाता है। आखिर हम चाहते क्या है? कन्या भ्रूण हत्या कर बेटियों को जन्म ही न लेने दो और बेटों की शादी के लिए लड़कियां न मिलने पर बेटों को कुवांरे रहने दो! क्या होगा हमारे समाज का भविष्य?

यही सब सोचसमझकर कुछ समाजसेवक, कुछ सामाजिक संगठन बेटी बचाओ अभियान चला रहे है। हिमाचल सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या करने वाले लोगों के बारे में जानकारी देने वाले को 10,000 रु. का नगद ईनाम देने की घोषणा की है। इंदिरा गांधी सुरक्षा योजना के तहत पहली कन्या के जन्म के बाद परिवार नियोजन करने वाले को 20,000 रु. प्रोत्साहन राशि के रूप में प्रदान किए जा रहे है।

कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए प्रसूति पूर्व जांच अधिनियम 1994 को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। भ्रूण परीक्षण करने वाले क्लीनिक सील किए जाने चाहिए तथा उन डॉक्टरों के लाइसेंस रद्द किए जाने चाहिए। लेकिन सिर्फ कानून बनाने से कुछ नहीं होगा। इसका सबसे कारगर उपाय यही है कि हमें अपनी सोच बदलनी होगी।

अंत में सिर्फ इतना ही कहना चाहती हूं कि,
“ऐसे ही चलता रहा आने वाले वक्त में कुछ देर तक,
तो अपना ही वजूद खो देगा आदमी !”

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