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बेटी बचाओ अभियान

आपकी सहेली
आपकी सहेली
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मूलत: प्रकाशित – ‘अग्रचिंतन’ नागपुर, 2013…

beti


“दोनों आंखें एक समान, बेटों जैसे बेटी महान !’
“करनी है जीवन की रक्षा, कन्याओं की करो सुरक्षा !”
“बेटी को मरवाओगे, तो बहु कहां से लोगे?”

ये है बेटी बचाओ अभियान के चुनिंदा घोषवाक्य। कितने दुःख की बात है कि बेटी को देवी मानकर पूजने वाले देश में बेटी बचाओ अभियान चलाना पड़ रहा है। आजादी के बाद देश में करीब 5 करोड़ कन्या भ्रूण हत्याएं हो चुकी है। 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति एक हजार लड़कों पर सिर्फ 914 लड़कियां थी। देश के सबसे समृद्ध राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में यह लिंगानुपात सबसे कम है। कन्या भ्रूण हत्या सिर्फ गरीब और अशिक्षित लोग ही करते है, ऐसा नहीं है। अमीर और पढ़े-लिखे लोग भी इस अपराध में बराबरी के भागीदार है।कितनी विचित्र बात है कि कन्या भ्रूण हत्या कर माता-पिता अत्यंत निर्दयता से अपने ही अंश की जान ले लेते है। जो ब्रम्ह-हत्या से भी बड़ा पाप है। जिसका कोई प्रायश्चित नहीं है। जीवन लेने का हक़ तो केवल उसी को है जो जीवन देता है। फिर हम किस अधिकार से जन्म लेने से पहले ही कन्याओं को मार देते है? वो भी बिना किसी शर्म के ? बिना किसी अपराधबोध के?

बेटी बचाओ अभियान में सबसे बड़ी बाधा हमारी धार्मिक मान्यताएं है। कन्या भ्रूण हत्या का अहम कारण है, एक डर कि बेटा ही नहीं हुआ तो वंश कैसे चलेगा? हमारा नाम कौन रोशन करेगा? क्या आपको लालबहादुर शास्त्री, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद इन लोगों के पिता का नाम याद है ? नहीं न? फिर हम किस वंश की बात करते है? हम यह बात क्यों नहीं समझते कि हमारा नाम हमारे बच्चें रोशन नहीं करेंगे ! हममें खुद में इतना दम होना चाहिए कि हम खुद अपना नाम रोशन कर सके ! यदि बच्चें अच्छे निकले तो वे खुद का नाम रोशन करेंगे, हमारा नहीं ! सचिन ने क्रिकेट में, लता मंगेशकर ने गाने में खुद का नाम रोशन किया। ( क्योंकि पिता का नाम तो एक प्रतिशत भारतीयों को भी नहीं पता.) वैसे भी आजकल पिता का नाम लिखने का फैशन ही नहीं है।  सिर्फ सरकारी दस्तावेजों में ही पिता का नाम लिखा जाता है।

कन्या भ्रूण हत्या का दूसरा कारण है कि यदि बेटी हुई तो हमारे बुढ़ापे का सहारा कौन बनेगा? जरा सोचिए, इस बात की क्या ग्यारंटी है कि बेटा आपके पास ही रहेगा? बहुत संभावना है कि यदि बेटा लायक निकला तो किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने हेतु शहर चला जाएगा और नालायक निकला तो—! क्या सभी बेटे अपने माता-पिता को बुढ़ापे में सहारा देते है? यदि ऐसा है, तो फिर वृध्दाश्रमों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी गति से क्यों बढ़ रही है?

कन्या भ्रूण हत्या का तीसरा कारण है, मुखाग्नि कौन देगा? आज हमारी धार्मिक मान्यता ऐसी है कि जिस बेटे ने जीते जी एक ग्लास पानी के लिए न पूछा हो, लेकिन मरने के बाद मुखाग्नि वही नालायक बेटा देगा! क्या बेटियों के अग्नि देने से हमारा शरीर जलेगा नहीं?

चौथा कारण है दहेज़। यदि बेटी को शादी में दहेज़ देते वक्त हम पर पहाड़ टूटता है तो हम बेटे की शादी में दहेज़ क्यों लेते है? न दहेज़ लीजिए, न दहेज़ दीजिए! हिसाब बराबर! ( क्रमशः)

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