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मूलत: प्रकाशित – ‘अग्रचिंतन’ नागपुर, 2013…
बेटी बचाओ अभियान में सबसे बड़ी बाधा हमारी धार्मिक मान्यताएं है। कन्या भ्रूण हत्या का अहम कारण है, एक डर कि बेटा ही नहीं हुआ तो वंश कैसे चलेगा? हमारा नाम कौन रोशन करेगा? क्या आपको लालबहादुर शास्त्री, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद इन लोगों के पिता का नाम याद है ? नहीं न? फिर हम किस वंश की बात करते है? हम यह बात क्यों नहीं समझते कि हमारा नाम हमारे बच्चें रोशन नहीं करेंगे ! हममें खुद में इतना दम होना चाहिए कि हम खुद अपना नाम रोशन कर सके ! यदि बच्चें अच्छे निकले तो वे खुद का नाम रोशन करेंगे, हमारा नहीं ! सचिन ने क्रिकेट में, लता मंगेशकर ने गाने में खुद का नाम रोशन किया। ( क्योंकि पिता का नाम तो एक प्रतिशत भारतीयों को भी नहीं पता.) वैसे भी आजकल पिता का नाम लिखने का फैशन ही नहीं है। सिर्फ सरकारी दस्तावेजों में ही पिता का नाम लिखा जाता है।
कन्या भ्रूण हत्या का दूसरा कारण है कि यदि बेटी हुई तो हमारे बुढ़ापे का सहारा कौन बनेगा? जरा सोचिए, इस बात की क्या ग्यारंटी है कि बेटा आपके पास ही रहेगा? बहुत संभावना है कि यदि बेटा लायक निकला तो किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने हेतु शहर चला जाएगा और नालायक निकला तो—! क्या सभी बेटे अपने माता-पिता को बुढ़ापे में सहारा देते है? यदि ऐसा है, तो फिर वृध्दाश्रमों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी गति से क्यों बढ़ रही है?
कन्या भ्रूण हत्या का तीसरा कारण है, मुखाग्नि कौन देगा? आज हमारी धार्मिक मान्यता ऐसी है कि जिस बेटे ने जीते जी एक ग्लास पानी के लिए न पूछा हो, लेकिन मरने के बाद मुखाग्नि वही नालायक बेटा देगा! क्या बेटियों के अग्नि देने से हमारा शरीर जलेगा नहीं?
चौथा कारण है दहेज़। यदि बेटी को शादी में दहेज़ देते वक्त हम पर पहाड़ टूटता है तो हम बेटे की शादी में दहेज़ क्यों लेते है? न दहेज़ लीजिए, न दहेज़ दीजिए! हिसाब बराबर! ( क्रमशः)
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