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यह कैसी फैशन ?

आपकी सहेली
आपकी सहेली
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शिल्पा के यहां किसी कार्यवश ९ – १० लोग आएं। अब कोई कार्यवश आये या बिना कार्यवश जलपान तो करवाना ही था। खास लोग जो थे। शिल्पा ने उन्हें थोड़ा – थोड़ा नमकीन और एक – एक पीस मीठे का सर्व किया। हर एक की प्लेट में नास्ता इतना ही था कि एक छोटा बच्चा भी उसे पूरा खा लेता। लेकिन जब शिल्पा झूठी प्लेट उठाने लगी तो उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ की हर प्लेट में थोड़ा – थोड़ा नमकीन झूठा छोड़ा गया था। जब उसने सभी प्लेटो का नमकीन एक प्लेट में किया तो एक प्लेट में देने लायक नमकीन तैयार हो गया।

ऐसा ही हाल चाय का हुआ। आजकल आधा कप ही चाय देने का फैशन है। इसलिए शिल्पा ने भी आधा – आधा कप चाय ही मेहमानो को दी। आधा -आधा कप चाय में से भी एक – एक घूंट चाय मेहमानों ने झूठी छोड़ी थी। जब उसने चाय एक कप में जमा की तो एक कप पूरा भर गया। अब शिल्पा सोचने लगी कि इस नमकीन और चाय का क्या करे ? महंगाई के ज़माने में इतना नमकीन , इतनी चाय फेंकते भी नहीं बन रही थी। चुंकि उसे यह पता था की यह प्लेट , यह चाय की प्याली झूठन से तैयार हुई है अत: किसी को देते भी नही बन रहा था। आख़िरकार शिल्पा को हल्दीराम का महंगा नमकीन कूड़ेदान में फेकना पड़ा। बिना पानी की कोरे दूध की चाय बेसिन में बहानी पड़ी।

आज शिल्पा को इन पढ़े – लिखे , सभ्य कहलवाने वाले लोगो पर बहुत गुस्सा आ रहा था। न चाहते हुए भी मेहमानों ने झूठन के रूप में महंगा नमकीन और एक कप चाय उसे फेंकने पर मजबूर किया था। क्या करेंगे ऐसी फैशन का ? आज जहां भारत की आधी से ज्यादा आबादी दाने – दाने को मोहताज है वहां हम सिर्फ फैशन के नाम पर अनाज को कूड़ेदान में फेंक रहे है। और वो भी बड़े शान से ! उपर से कहना यह कि पूरी प्लेट का नाश्ता खत्म करना मैनर्स के खिलाफ है। हम खाते – पीते घर के सभ्य लोग है ! हमने प्लेट में का पूरा नाश्ता किया , कप की पूरी चाय खत्म की तो लोग हमें भिखमंगे समझेंगे। यह हमारी पिछडेपन की निशानी होगी। आखिर क्या हो गया है हमें ? बूंद – बूंद सहेजने के बदले हम अच्छी – अच्छी चीजों को सिर्फ फैशन के नाम पर कूड़ेदान में फेंक रहे है। हम किसी इंसान को खाने के लिए अच्छी चीज नही दे सकते। कामवाली बाई को हल्दीराम का महंगा नमकीन देने की हम सोच भी नही सकते। हाँ , कूड़ेदान में जरूर फेंक सकते है। यही आज की सभ्यता है।

कोई कहता है हम पैसेवाले है। हमारे लिए दो – चार रूपये कोई मायने नही रखते। लेकिन ये ही पैसेवाले सब्जीवाले से कितना मोलभाव करते है ? रिक्क्षा चालक से कितनी झिकझिक करते है ? उस वक्त वो ही दो – चार रूपये इनके लिए बहुत अहमियत रखने लगते है। एक रिक्शेवाला जो अपना पसीना बहाकर , हमारा बोजा ढोकर ले जा रहा है हम उसे दो रूपये ज्यादा नही दे सकते और सिर्फ फैशन के नाम पर दो रूपये से ज्यादा का नाश्ता झूठन के रूप में फेंक सकते है।

सबसे दुर्भाग्य की बात तो यह है कि यह फैशन हमारे समाज में बहुत फल – फुल रहा है। काश , हमारे समाज की चेतना जागे ताकि कई किलो अनाज सिर्फ फैशन के नाम पर बर्बाद होने से बचे !

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